श्री करक चतुर्थी व्रत करवा चौथ के नाम से प्रसिध्द है .
यह पंजाब, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान का प्रमुख पर्व है . यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है . सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति के रक्षार्थ इस व्रत को रखती हैं .
गोधूलि की बेला यानी चन्द्रोदय के एक घण्टे पूर्व श्री गणपति एवं अम्बिका गौर, श्री नन्दीश्वर, श्री कार्तिकेयजी, श्री शिवजी ( प्रधान देवी माँ पार्वतीजी के पति) , प्रधान देवी श्री अम्बिका पार्वतीजी और चन्द्रमा का पूजन किया जाता है .
यह व्रत निर्जल किया जाना चाहिये परन्तु दूध, दधि, फल, मेवा, खोवा का सेवन करके भी यह व्रत रखा जा सकता है . तात्पर्य यह है कि श्रध्दापूर्वक विधि एवं विश्वास के साथ, अपनी मर्यादा के अनुकूल व्रत एवं पूजन करना चाहिये . विशेष बात यही है कि अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिये .
महिलाओं को पूजन के समय उपयुक्त लगने वाले वस्त्र पहन कर बैठना चाहिये. करक चतुर्थी के दिन स्त्रियाँ अधिकतर अपनी शादी का जोड़ा, टीका, नथ, करधन आदि आभूषण पहन कर पूर्ण श्रृंगार करके पूजन के लिये तैयार होती हैं .
देवताओं की प्रतिमा अथवा चित्र का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिये . पूजन के लिये स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिये क्योंकि ज्ञान, कर्म, तेज और शक्ति का स्वामी सूर्य पूर्व से उदित होता है .
'ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, 'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा 'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।
करवा चौथ पूजा
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