करवा चौथ पूजा

श्री करक चतुर्थी व्रत करवा चौथ के नाम से प्रसिध्द है .

यह पंजाब, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान का प्रमुख पर्व है . यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है . सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति के रक्षार्थ इस व्रत को रखती हैं .

गोधूलि की बेला यानी चन्द्रोदय के एक घण्टे पूर्व श्री गणपति एवं अम्बिका गौर, श्री नन्दीश्वर, श्री कार्तिकेयजी, श्री शिवजी ( प्रधान देवी माँ पार्वतीजी के पति) , प्रधान देवी श्री अम्बिका पार्वतीजी और चन्द्रमा का पूजन किया जाता है .

यह व्रत निर्जल किया जाना चाहिये परन्तु दूध, दधि, फल, मेवा, खोवा का सेवन करके भी यह व्रत रखा जा सकता है . तात्पर्य यह है कि श्रध्दापूर्वक विधि एवं विश्वास के साथ, अपनी मर्यादा के अनुकूल व्रत एवं पूजन करना चाहिये . विशेष बात यही है कि अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिये .

महिलाओं को पूजन के समय उपयुक्त लगने वाले वस्त्र पहन कर बैठना चाहिये. करक चतुर्थी के दिन स्त्रियाँ अधिकतर अपनी शादी का जोड़ा, टीका, नथ, करधन आदि आभूषण पहन कर पूर्ण श्रृंगार करके पूजन के लिये तैयार होती हैं .

देवताओं की प्रतिमा अथवा चित्र का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिये . पूजन के लिये स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिये क्योंकि ज्ञान, कर्म, तेज और शक्ति का स्वामी सूर्य पूर्व से उदित होता है .

'ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, 'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा 'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।

विसर्जन पूजा

आराधितानां देवतानां पुनः पूजां करिष्ये ..

.. पुनः पूजा ..


ॐ भूर्भुव: स्व: पार्वतीदेव्यै नमः

ध्यायामि. ध्यानं समर्पयामि .
आवाहयामि .
आसनं समर्पयामि .
पाद्यं समर्पयामि .
अर्घ्यं समर्पयामि .
आचमनीयं समर्पयामि .
पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि .
महा अभिषेकं समर्पयामि .
वस्त्रयुग्मं समर्पयामि .
यज्ञोपवीतं समर्पयामि .
गन्धं समर्पयामि .
नाना परिमल द्रव्यं समर्पयामि .
हस्तभूषणं समर्पयामि .
अक्षतान् समर्पयामि .
पुष्पं समर्पयामि .
नाना अलंकारं समर्पयामि .
अंग पूजां समर्पयामि .
पुष्प पूजां समर्पयामि .
पत्र पूजां समर्पयामि .
नाम पूजां समर्पयामि .
अष्टोत्तर पूजां समर्पयामि .
धूपं आघ्रापयामि
दीपं दर्शयामि
नैवेद्यं समर्पयामि .
महाफलं समर्पयामि .
फलाष्टकं समर्पयामि .
करोद्वर्तनकं समर्पयामि .
ताम्बूलं समर्पयामि .
दक्षिणां समर्पयामि .
महानीराजनं समर्पयामि .
कर्पूरदीपं समर्पयामि .
प्रदक्षिणां समर्पयामि .
नमस्कारान् समर्पयामि .
राजोपचारं समर्पयामि .
मन्त्रपुष्पं समर्पयामि .

पूजांते छत्रं समर्पयामि .
चामरं समर्पयामि .
नृत्यं समर्पयामि .
गीतं समर्पयामि .
वाद्यं समर्पयामि .
आंदोलिकारोहणं समर्पयामि .
अश्वारोहणं समर्पयामि .
गजारोहणं समर्पयामि .

ॐ भूर्भुव: स्व: पार्वतीदेव्यै नम.
समस्त राजोपचार देवोपचार शक्त्युपचार भक्त्युपचार पूजां समर्पयामि ..

उत्तिष्ठि देवि चण्डेशि शुभां पूजां प्रगृह्य च .
कुरुष्व मम कल्याणं अष्टिभिः शक्तिभिः सह ..

दुर्गे देवि जगन्मातः स्वस्थानं गच्छ पूजिते .
संवत्सरे व्यतीते तु पुनरागमनाय वै ..

आराधितानां देवी तानां पुनः पूजां करिष्ये ..
ॐ भूर्भुव: स्व: पार्वतीदेव्यै नमः

क्षमा याचना

यस्य स्मृत्या च नाम्नोक्त्या तपः पूजा क्रियादिशु .
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्देय् तं अच्युतम् ..

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दनी .
यत्पूजितं मया देवी परिपूर्णं तथास्तु मे ..

आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनम् .
पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी ..

अपराध सहस्राणि क्रियन्ते अहर्निशं मया |
तानि सर्वाणि मे देवि क्षमस्व पुरुषोत्तम ||

अनेन मया कृतेन श्री पार्वति देवि
सुप्रीतो सुप्रसन्नो वरदो भवतु .

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात् .
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि ..

ॐ तत्सद् ब्रह्मार्पणमस्तु .

ॐ विष्णवे नमः . ॐ विष्णवे नमः . ॐ विष्णवे नमः

करवा चौथ कथा

ज्यादातर महिलाएं करवा चौथ व्रत अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं एवं कथा भी उसी अनुसार पढ़ती है । निम्न वेब साइट पर आप भिन्न कथायें पढ़ सकतीं हैं .



http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/karva/0710/27/1071027045_1.htm

श्री पार्वती पूजन

अक्षत पुष्प हाथ में ले कर मन्त्रोच्चारण करें

ध्यान

नमस्कार

आवाहन

हिमाद्रितनयां देवीं वरदां शंकरप्रियाम् .
लम्बोदरस्य जननीं पार्वतीं आवाहयाम्यहम् ||

हिमालय पर्वत की पुत्री, वर देने वाली देवी, शंकर की प्रिया (पत्नी) , लम्बे उदर वाले (गणेशजी) की माता पार्वती (पार्वतीजी) , (हम) आपका आवाहन करते हैं .

अक्षत पुष्प अम्बिका पार्वती के सन्मुख रख दीजिये .

प्रार्थना/स्तुति

नमस्कार 

आसनम् 
ॐ पार्वति देव्यै नमः . आसनं समर्पयामि ||

ॐ पार्वति देव्यै नमः कहते हुए आसन पर पुष्प से अक्षत छोडें . 


पाद्यम् 

ॐ पार्वति देव्यै नमः . पाद्यं समर्पयामि ||

ॐ पार्वति देव्यै नमः कहते हुए चरण धोने के लिये जल चरणों पर छिडकें .

अर्घ्यम्
ॐ पार्वति देव्यै नमः . अर्घ्यं आचमनीयं च समर्पयामि ||

ॐ पार्वति देव्यै नमः कहते हुए पुष्प से अर्घ्य के लिये जल चढ़ायें तत्पश्चात् मुख धोने के लिये पुष्प से जल छिडकें .
आचमनीयम्

ॐ भूर्भुव: स्व: पार्वतीदेव्यै नम: . अर्घ्यं पाद्यं स्नानं च आचमनीयं जलं समर्पयामि .

ॐ भूर्भुव: स्व: माता पार्वती देवी को नमस्कार है . अर्घ्य के लिये, चरण धोने के लिये और स्नान के लिये जल समर्पित है .

पुष्प से अथवा आचमनी से तीन बार जल चढ़ायें . ऐसा भाव रखें कि माँ के चरण धो रहे हैं एवं स्नान करा रहे हैं .
हाथ में पुष्प व अक्षत लेकर प्रार्थना करें .

पुष्प व अक्षत छोडें . 

स्नानं 


ॐ पार्वति देव्यै नमः . स्नानं समर्पयामि .

ॐ पार्वति देव्यै नमः कहते हुए स्नान कराने की भावना से पुष्प से जल छिडकें .
ॐ पार्वति देव्यै नमः . दुग्ध, दधि, घृत, मधु, शर्करा स्नानं च समर्पयामि .
ॐ पार्वति देव्यै नमः . पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि .


पञ्चामृतं मयानीतं पयोदधि समन्वितम् |
घृत मधु शर्करया स्नानार्थं प्रति गृह्यताम् ||

दूध, दधि, घृत, मधु व शर्करा से युक्त पञ्चामृत का स्नान गृहण करें .

पुष्प से पार्वती देवी  के ऊपर पञ्चामृत छिडकिये .



ॐ पार्वति देव्यै नमः . शुध्दोदक स्नानं समर्पयामि .

ॐ पार्वति देव्यै नमः . शुध्द जल का स्नान अर्पित है.

शुध्द जल छिडकें .  

वस्त्र उपवस्त्रं



ॐ पार्वति देव्यै नमः . वस्त्र उपवस्त्रं च समर्पयामि .

ॐ पार्वति देव्यै नमः . वस्त्र एवं उपवस्त्र अर्पित है .

रक्षासूत्र तोडकर एक बार वस्त्र के लिये, दुबारा उपवस्त्र के लिये चढ़ायें .

गन्धं चन्दनं

ॐ भूर्भुव: स्व: पार्वतीदेव्यै नम: . गन्धं सिन्दूरं च समर्पयामि .

ॐ भूर्भुव: स्व: माता पार्वती देवी को नमस्कार है . हम आपको रोली लगाते हैं और सिन्दूर चढ़ाते हैं .

माथे पर रोली लगायें . माँग पर सिन्दूर तीन या पाँच बार चढ़ायें . तर्जनी अंगुली को दूर रखें यानी रोली सिन्दूर तर्जनी से न छुले .

पुष्पं पुष्पमालां

ॐ भूर्भुव: स्व: पार्वतीदेव्यै नम: . पुष्पाणि समर्पयामि .

ॐ भूर्भुव: स्व: माता पार्वती देवी को नमस्कार है . पुष्प एवं पुष्पमाला समर्पित है .

पुष्पों को चढ़ायें और पुष्पमाला हो तो पहनावें .

धूपं दीपं

ॐ भूर्भुव: स्व: पार्वतीदेव्यै नम: . धूपं दीपं च दर्शयामि .

ॐ भूर्भुव: स्व: माता पार्वती देवी को नमस्कार है . धूप अथवा अगरबत्ती एवं दीपक दिखाते हैं .

धूप अथवा अगरबत्ती की ओर अक्षत छिडकें . दीपक की ओर अक्षत छिडकें . भाव रहे कि धूप सुँघा रहे हैं व दीपक से माँ की आरती कर रहे हैं .

नैवेद्यं

ॐ भूर्भुव: स्व: नैवेद्यं समर्पयामि . पार्वतीदेव्यै नम: ||

ॐ भूर्भुव: स्व: नैवेद्य अर्थात् प्रसाद समर्पित है . माता पार्वती देवी को नमस्कार है .

पुष्प से जल छिडकें . अलग पात्र में जो थोडा नैवेद्य रखा है उसको चढ़ायें . भाव रखें कि माँ पार्वती फल, मेवा एवं मिठाई पा रही हैं .

आचमनीयं

ॐ भूर्भुव: स्व: आचमनीयं जलं समर्पयामि . मुख शुध्दे पुन: आचमनीयं जलं समर्पयामि . पार्वतीदेव्यै नम: ||

ॐ भूर्भुव: स्व: पीने योग्य शुध्द जल अर्पित है . मुख की शुध्दि के लिये पुन: जल अर्पित है . माता पार्वती देवी को नमस्कार है .

आचमनी से जल चढ़ायें भाव रहे कि मां जल ग्रहण कर रही हैं . दुबारा मुँह की शुध्दि के लिये जल चडायें .

प्रार्थना/स्तुति
हाथ में फूल और अक्षत लेकर प्रार्थना करें

ॐ भूर्भुव: स्व: पार्वतीदेव्यै नम: . मम पूजां गृहाण .

ॐ भूर्भुव: स्व: पार्वती देवी को नमस्कार है . मेरी पूजा ग्रहण कीजिये .

अक्षत छोडते जाइये एवं भाव रखिये कि पार्वती देवी ने पूजा को स्वीकार किया और पूजा से प्रसन्न हो गयीँ .



नमस्कार

हाथ में पुष्प अक्षत ले कर, दोनों हाथ जोडे .



ॐ सर्व मंगल माण्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके . शरण्ये त्र्यम्बके पार्वती नारायणी नमोऽस्तुते ||

नारायणि . आप सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हैं . आप कल्याण करने वाली शिवा हैं . सब प्रकार के मनोरथों को सिध्द करने वाली हैं . शरणागत वत्सला तीन नयनों वाली पार्वती (माँ) आपको नमस्कार है .

अनया पूजया श्री गौर अम्बिके प्रीयतां न मम .

मेरे द्वारा यह पूजा की गयी है , हे माँ पार्वती आप मेरे ऊपर प्रसन्न होइये .

फूल और अक्षत माँ पार्वती के सन्मुख रख दें .





प्रार्थना

हाथ जोड कर ध्यान करें



देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखं .
रूपं देहि जयं देहि यशोदेहि द्विषो जहि ||

हे माँ . मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो. परम सुख दो,
जय दो, यश दो, और मेरे काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ||

ॐ भूर्भुव: स्व: पार्वतीदेव्यै नम: . प्रार्थनां समर्पयामि ||

ॐ भूर्भुव: स्व: पार्वती देवी को नमस्कार है . प्रार्थना को अर्पित करते हैं . स्वीकार करिये .













महिषघ्नीं महादेवीं कुमारीं सिंहवाहिनीम् .
दानवांस्तर्जयन्तीं च सर्वकामदुघां शिवाम् ..

ध्यायामि मनसा दुर्गां नाभिमध्ये व्यवस्थिताम् .
आगच्छ वरदे देवि दैत्य दर्प्प निपातिनि ..

पूजां गृहाण सुमुखि नमस्ते शंकरप्रिये .
सर्वतीर्थमयं वारि सर्वदेवं समन्वितम् ..

इमं घटं समागच्छ तिष्ठ देवगणैः सह .
दुर्गे देवि समागच्छ सान्निध्यम् इह कल्पय ..


नाम पूजा

ॐ स्वर्ण गौर्यै नमः . ॐ महा गौर्यै नमः .
ॐ कात्यायिन्यै नमः .
ॐ कौमार्यै नमः .
ॐ भद्रायै नमः .

ॐ विष्णुसौन्दर्यै नमः .
ॐ मंगळदेवतायै नमः .
ॐ राकेन्दुवदनायै नमः .
ॐ चन्द्रशेखरपत्न्यै नमः .
ॐ विश्वेश्वरप्रियायै नमः .

ॐ दाक्षायण्यै नमः .
ॐ कृष्णवेण्यै नमः .
ॐ लोललोचनायै नमः .
ॐ भवान्यै नमः .
ॐ पंचकात्मजायै नमः .

ॐ श्री महा गौर्यै नमः .
ॐ महागौरी नाम पूजां समर्पयामि ..

स्तुति

जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥
जय गज बदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥
नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना॥
भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि॥

पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष॥

सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारि पिआरी॥
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥
मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें॥
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं॥
बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी॥
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ॥
सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥

मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥

एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥

जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे॥

आरती 

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी,
तुम् को निस दिन् ध्यावत्,
मैयाजी को निस दिन् ध्यावत्
हरि ब्रह्मा शिव्जी
बोलो जय अम्बे गौरी ..

मांग् सिन्दूर विराजत टीको मृग मद को
मैया टीको मृग मद को
उज्वल से दो नैना चन्द्रवदन नीको
बोलो जय अम्बे गौरी..

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे
मैया रक्ताम्बर साजे
रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे
बोलो जय अम्बे गौरी..

केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारि
मैया खड्ग कृपाण धारि
सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी
बोलो जय अम्बे गौरी..

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती
मैया नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योती
बोलो जय अम्बे गौरी

शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर धाती
मैया महिषासुर धाति
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती
बोलो जय अम्बे गौरी..

चण्ड मुण्ड सम्हार शोणित बीज हरे
मैया शोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोव् मारे सुर भय दूर् करे
बोलो जय अम्बे गौरी..

ब्रह्माणी रुद्राणी तुम् कमला राणी
मैया तुम कमला राणी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी
बोलो जय अम्बे गौरी..

चौसठ योगिन गावत नृत्य करत भैरोम्
मैया नृतय करत भैरोम्
बाजत ताळ मृदंग और बाजत डमरू
बोलो जय अम्बे गौरी..

तुम् हो जग की माता तुम् ही हो भर्ता
मैया तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुख हर्ता सुख सम्पति कर्ता
बोलो जय अम्बे गौरी..

भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारि
मैया वर मुद्रा धरी
मन वांछित फल पावत देवता नर नारी
बोलो जय अम्बे गौरी..

कंचन थाळ विराजत अगर कपूर बाती
मैया अगर कपूर बाती
माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती
बोलो जय अम्बे गौरी..

मां अम्बे की आरती जो कोयी नर गावे
मैया जो कोयी नर गावे
कह्त शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति पावे
बोलो जय अम्बे गौरी..

प्रार्थना

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके .
शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते ..

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् .
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ..

रूपं देहि यशो देहि देहि भगं भगवति देहि मे .
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामान् प्रदेहि मे ..

श्री शिव पूजन ( प्रधान देवता)

हाथ जोड कर, हाथ में पुष्प व अक्षत लेकर

ध्यान

भवानीशंकरौ वन्दे श्रध्दाविश्वास रूपिणौ .
याभ्यां बिना पश्यन्ति सिध्दा: स्वान्त: स्थमीश्वरम् ..

श्रध्दा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वन्दना करता हुँ . जिनके बिना सिध्दजन अपने अन्त:करण में स्थित ईश्वर को देख नहीं सकते .

नमस्कार

कुन्दुइन्दुवर गौर सुन्दरं अम्बिकापतिं इष्टसिध्दिदम् .
कारुणीककल कञ्जलोचनं नौमि शंकरं अनङ्गमोचनम् ..

कुन्द के फूल, चन्द्रमा और शङ्ख के समान सुन्दर गौर वर्ण जगत्जननी श्री पार्वतीजी के पति, वाञ्छित फल देनेवाले, (दुखियों पर सदा) दया करने वाले, सुन्दर कमल के समान नेत्र वाले, कामदेव से छुडाने वाले (कल्याणकारी) श्री शंकरजी को मैं नमस्कार करती हूँ .

नम: शिवाय कहते हुए पुष्प व अक्षत छोडें .

पूजन

नम: शिवाय .
आसनं समर्पयामि ..

ॐ नम: शिवाय कहते हुए आसन पर पुष्प से अक्षत छोडें .

नम: शिवाय .
पाद्यं समर्पयामि ..

ॐ नम: शिवाय कहते हुए चरण धोने के लिये जल चरणों पर छिडकें .

नम: शिवाय .
अर्घ्यं आचमनीयं समर्पयामि ..

ॐ नम: शिवाय कहते हुए पुष्प से अर्घ्य के लिये जल चढ़ायें तत्पश्चात् मुख धोने के लिये पुष्प से जल छिडकें .

हाथ में पुष्प व अक्षत लेकर प्रार्थना करें .

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम् .
ऊर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षियमामृतात् ..

ॐ हम त्रिनेत्रधारी ( शिवजी) को प्रणाम करते हैं , जो दिव्यगन्धी हैं और पुष्टियों को बढ़ाने वाले हैं . जिस प्रकार पका हुआ फल तरु से मुक्त हो जाता है उसी प्रकार हमें मृत्यु से मुक्त कर अमृतत्व का दान देवें .

पुष्प व अक्षत छोडें .

विशेष: यह मृत्युञ्जय मंत्र है, इसका प्रतिदिन उच्चारण करना चाहिये .

नम: शिवाय .
स्नानं समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय कहते हुए स्नान कराने की भावना से पुष्प से जल छिडकें .

नम: शिवाय .
दुग्ध, दधि, घृत, मधु, शर्करा स्नानं समर्पयामि .
नम: शिवाय .
पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि .

पञ्चामृतं मयानीतं पयोदधि समन्वितम् .
घृत मधु शर्करया स्नानार्थं प्रति गृह्यताम् ..

दूध, दधि, घृत, मधु व शर्करा से युक्त पञ्चामृत का स्नान गृहण करें .

पुष्प से शिवजी के ऊपर पञ्चामृत छिडकिये .

नम: शिवाय .
शुध्दोदक स्नानं समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . शुध्द जल का स्नान अर्पित है.

शुध्द जल छिडकें .

नम: शिवाय .
वस्त्र उपवस्त्रं समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . वस्त्र एवं उपवस्त्र अर्पित है .

रक्षासूत्र तोडकर एक बार वस्त्र के लिये, दुबारा उपवस्त्र के लिये चढ़ायें .

नम: शिवाय .
गन्धं चन्दनं समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . गन्ध और चन्दन समर्पित है .

रोली व चन्दन से टीका लगायें .

नम: शिवाय .
पुष्पं पुष्पमालां समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . पुष्प और पुष्पमाला अर्पित है .

पुष्प व माला चढ़ावें व पहनावें .

नम: शिवाय .
धूपं दीपं दर्शयामि .

ॐ नम: शिवाय . धूप व दीप दिखाते हैं .

धूप की ओर अक्षत छिडकें . दीपक की ओर अक्षत छिडकें . ऐसा भाव रहे कि धूपबत्ती दिखा रहे हैं एवं दीपक से आरती कर रहे हैं .

नम: शिवाय .
नैवेद्यं समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . प्रसाद अर्पित है .

पात्र में थोडा फल, मिष्ठान व मेवा शंकरजी को अर्पित करें , भाव रखें कि भगवान् भोग पा रहे हैं .

नम: शिवाय .
आचमनीयं जलं समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . पीने योग्य जल अर्पित है .

आचमनी से प्रथम बार पीने के लिये जल चढ़ायें . दूसरी बार मुख शुध्दि के लिये जल चढ़ायें .

प्रार्थना

हाथ जोडकर कहें,

नम: शिवाय .
प्रार्थनां करोमि

वन्दे उमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणम् .
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् .
वन्दे सूर्य शशाङ्क वह्निनयन वन्दे मुकुन्द प्रियम् .
वन्दे भक्तजनाश्रयं वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् .

श्री पार्वतीजी के पति (शंकर) को नमस्कार है . संसार के संहारकारी, देवताओं के गुरु (शिव) को नमस्कार है . सर्पों के आभूषण धारण करने वाले (शिव) को नम्स्कार है . हिरण चर्म को धारण करने वाले (शिव) को नमस्कार है . पशुओं (प्राणियों) के नाथ (शिव) को नमस्कार है . सूर्य, चन्द्र, अग्नि नयन वाले (शिव) को नमस्कार है . मुकुन्दप्रिय (शिव) को नमस्कार है . भक्त जनों के आश्रय और वर देने वाले कल्याणकारी (शिव) शंकरजी को नमस्कार है .

हाथ में फूल और अक्षत लेकर प्रार्थना करें

नमामि शमीशान निर्वाण रूपम् .
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपम् ..
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहम् .
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ..

हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करती हूँ . निज स्वरूप में स्थित (अर्थात्) मायिक गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाश रूप एवं आकाश को ही वस्त्ररूप में धारण करने वाले दिगम्बर (या आकाश को भी आच्छादित करनेवाले) (शिवजी) मैं आपको नमस्कार करता हूँ .

निराकारमोंकारं तोयं तुरीयं .
गिरा ग्यानगोतीतमीशं गिरीशं ..
करालं महाकाल कालं कृपालं .
गुणागार संसारपारं नतोऽहं ..

निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत) वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेशवर (शिव) को मैं नमस्कार करता हूँ .

तुषाराद्रि संकाश गौरं गंभीरं .
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं ..
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा .
लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ..

जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोडों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुन्दर नदी गङ्गाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है .

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं .
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं .
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं .
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ..

जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं . सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख, नीलकण्ठ और दयालु हैं . सिंह चर्म का वस्त्र धारण किये और मुण्डमाल पहने हैं , उन सबके प्यारे और सबके नाथ ( कल्याण करनेवाले ) श्री शंकरजी को मैं भजती हूँ .

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं .
अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशं ..
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं .
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ..

प्रचंड ( रुद्ररूप) श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, ( प्रेम) भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजती हूँ .

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी .
सदा सज्जनानन्द दाता पुरारि ..
चिदानंद संदोह मोहापहारी .
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारि ..

कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, कल्प का अन्त ( अर्थात् प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले ( कामदेव के शत्रु) हे प्रभो . प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए .

यावद् उमानाथ पादारविन्दं .
भजंतीह लोके परे वा नराणां ..
तावद् सुखं शान्ति सन्तापनाशं .
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ..

जब तक मनुष्य श्रीपार्वतीजी के पति ( शिवजी) के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक में और न तो परलोक में सुख शान्ति मिलती है और अनके तापों ( कष्टों) का भी नाश नहीं होता है . अत: हे समस्त जीवों के अन्दर ( हृदय) में निवास करने वाले प्रभो . प्रसन्न होइए .

जानामि योगं जपं नैव पूजां .
नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं ..
जरा जन्म दुखौद्य तातप्यमानं .
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ..

मैं न तो योग जानता हूँ, न जप और न पूजा ही . हे शम्भो . मैं तो सदा सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूँ . हे प्रभो . बुढ़ापा तथा जन्म ( मृत्यु) के दु:ख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:खों से रक्षा कीजिये . हे ईश्वर . हे शम्भो . मैं आपको नमस्कार करता हूँ .

विशेष : जो मनुष्य इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़्ते हैं उन पर भगवान शम्भु विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं .

नमस्कार

कर्पूर गौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं .
सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि ..

कर्पूर के समान गौर (उज्ज्वल वर्ण वाले) करुणा (दया) के अवतार, संसार के सार, जिनका सर्पों का हार है, (वह शिवजी) सदा मेरे कमलरूपी हृदय में निवास करें . (ऐसे) शिवजी को पार्वती सहित (हम) नमस्कार करते हैं .

नम: शिवाय .
नमस्कारान् प्रार्थनां समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . नमस्कार और प्रार्थना समर्पित है .

पुष्प अक्षत शिवजी को चढ़ा कर प्रेमपूर्वक नमस्कार करें

श्री नन्दीश्वर एवं श्री कार्तिकेय पूजन

हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर मन्त्रोच्चारण करें .

श्रीमन्नन्दीश्वराय नम: .
श्रीमन्कार्तिकेय नम: ..

श्री नन्दीश्वर महाराज को नम्स्कार है . श्री कार्तिकेय महाराज को नम्स्कार है .

पुष्प व अक्षत नन्दीश्वर महाराज को स्थान दिया है वहाँ रख दें . पुष्प व अक्षत कार्तिकेय महाराज को स्थान दिया है वहाँ रख दें .

सप्तोपचार पूजन

अर्घ्यं पाद्यं आचमनीयं समर्पयामि .

ॐ अर्घ्य के लिये और दोनों चरणों को धोने के लिये जल अर्पित है .

आचमनी से तीन बार जल चढ़ायें . दोनों चरणों के धोने के लिये, त्रय तापों से मुक्ति पाने के लिये अर्घ्य एवं मुख धोने के लिये जल समर्पित है . ऐसा भाव रखें .

गन्धं समर्पयामि .
चन्दनं समर्पयामि ..

ॐ गन्ध ( रोली, सेन्ट) और चन्दन समर्पित करते हैं .

रोली चन्दन छिडकें .

पुष्पं समर्पयामि .

ॐ पुष्प अर्पित करते हैं .

पुष्प चढ़ायें . हे प्रभु उत्तम दिव्य पुष्पों को स्वीकार करिये .

धूपं दीपं दर्शयामि .

ॐ धूप व दीप दिखाते हैं .

सूँघने योग्य धूपबत्ती अर्पित है कहते हुए अक्षत छिडकें . उत्तम प्रकाश से युक्त और अन्धकार दूर करने वाला दीपक है . इसे स्वीकार करिये . दीपक की ओर अक्षत छिडकिये .

नैवेद्यं समर्पयामि .

ॐ प्रसाद समर्पित है .

पात्र में जो नैवेद्य रखा है वह श्री नन्दीश्वर व कार्तिकेय महाराज को अर्पित करें . ऐसा भाव रखें कि फल, मेवा व मिष्ठान देवगण प्रसन्न हो कर पा रहे हैं .

आचमनीयं मुखशुध्दे आचमनीयं जलं समर्पयामि .

ॐ पीने के लिये पानी और मुखशुध्दि के लिये जल समर्पित है .

दो बार आचमनी से जल चढ़ायें . ऐसा भाव रखें कि भगवन् ने जल प्राप्त कर लिया .

नमो श्री नन्दीश्वराय नम: .
नमो श्री कार्तिकेयाय नम: .
नमस्कारान् समर्पयामि .

ॐ श्री नन्दीश्वर को नमस्कार है . ॐ श्री कार्तिकेय को नम्स्कार है . ॐ नमस्कार अर्पित है .

हाथ में पुष्प लेकर नमस्कार करते हुए पुष्प श्री नन्दीश्वर व श्री कार्तिकेयजी के सन्मुख रख दें .

संकल्प

हाथ में पुष्प अक्षत लेकर कुछ दक्षिणा स्वरूप द्रव्य भी लें तो उत्तम है .

विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: . परमात्मने श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य श्री विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्री ब्रह्मणो द्वितीयपरार्ध्दे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशति तमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गते ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौध्दावतारे वर्तमाने यथानाम संवत्सरे (२०५५ सन् १९९८) महामांगल्यप्रदे मासोत्तमे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे चतुर्थी तिथियौ दिनांक दिवस (वार) समय शुभयोगे शुभकरणे सकलशास्त्रश्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फलप्राप्ति काम: अहममात्मन: सर्वाभीष्टफलवाप्ति अहं (अपना नाम ) पत्नी (पति का नाम) श्री साम्बसदाशिव प्रीत्यर्थं गणपति गौराम्बिका, श्री नन्दीश्वर, श्री कार्तिकेय देवता पूजनं पूर्वकं श्री भवानीशंकर पूजनं श्री पार्वतीपूजनं करिष्यामि .

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: . ॐ परमात्मा श्री पुराणपुरुषोत्तम की आज्ञा द्वारा आज श्री ब्रह्मणो द्वितीयपरार्ध में कलियुग के प्रथम चरण में जम्बूद्वीप में स्थित भारतवर्ष में संवत्सर २०५५ अंग्रे? आई सन् १९९८ के शुभकारी उत्तममास कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को जो दिनांक वार को है , संध्या के समय शुभ योग में सब शास्त्रों, श्रुति, स्मृति और पुराणों में वर्णित फल की प्राप्ति के लिये मैं (स्वयं का नाम) (पतिका नाम) की पत्नी, श्री साम्बसदाशिव को प्रसन्न करने के लिये गणपति और अम्बिकागौर का पूजन करके, नन्दीश्वर व श्री कार्तिकेय के पूजन के पश्चात् श्री भवानीशंकर और प्रधान देवी श्री माँ पार्वती का पूजन करूंगी .

जल अक्षत पुष्प और द्रव्य पृथ्वी पर रख दें . हाथ धो लें .

विशेष

शास्त्रों में संकल्प का बडा महत्व दर्शाया गया है . संकल्प द्वारा पूजक अपनी इच्छा अभिव्यक्त करता है . यदि यजमान (जिसे पूजन करना है ) के लिये पुरोहित पूजन कराये तो संकल्प का महत्व और भी बढ़ जाता है .

श्री अम्बिका गौर पूजन

अक्षत पुष्प हाथ में ले कर मन्त्रोच्चारण करें

आवाहन

हिमाद्रितनयां देवीं वरदां शंकरप्रियाम् .
लम्बोदरस्य जननीं गौरीं आवाहयाम्यहम् ..

हिमालय पर्वत की पुत्री, वर देने वाली देवी, शंकर की प्रिया (पत्नी) , लम्बे उदर वाले (गणेशजी) की माता गौरी (पार्वतीजी) , (हम) आपका आवाहन करते हैं .

अक्षत पुष्प अम्बिका गौरी के सन्मुख रख दीजिये .

सप्तोपचार पूजन मन्त्र

भूर्भुव: स्व: गौरीदेव्यै नम: .
अर्घ्यं पाद्यं स्नानं आचमनीयं जलं समर्पयामि .

ॐ भूर्भुव: स्व: माता गौरी देवी को नमस्कार है . अर्घ्य के लिये, चरण धोने के लिये और स्नान के लिये जल समर्पित है .

पुष्प से अथवा आचमनी से तीन बार जल चढ़ायें . ऐसा भाव रखें कि माँ के चरण धो रहे हैं एवं स्नान करा रहे हैं .

भूर्भुव: स्व: गौरीदेव्यै नम: .
गन्धं सिन्दूरं समर्पयामि .

ॐ भूर्भुव: स्व: माता गौरी देवी को नमस्कार है . हम आपको रोली लगाते हैं और सिन्दूर चढ़ाते हैं .

माथे पर रोली लगायें . माँग पर सिन्दूर तीन या पाँच बार चढ़ायें . तर्जनी अंगुली को दूर रखें यानी रोली सिन्दूर तर्जनी से न छुले .

भूर्भुव: स्व: गौरीदेव्यै नम: .
पुष्पाणि समर्पयामि .

ॐ भूर्भुव: स्व: माता गौरी देवी को नमस्कार है . पुष्प एवं पुष्पमाला समर्पित है .

पुष्पों को चढ़ायें और पुष्पमाला हो तो पहनावें .

भूर्भुव: स्व: गौरीदेव्यै नम: .
धूपं दीपं दर्शयामि .

ॐ भूर्भुव: स्व: माता गौरी देवी को नमस्कार है . धूप अथवा अगरबत्ती एवं दीपक दिखाते हैं .

धूप अथवा अगरबत्ती की ओर अक्षत छिडकें . दीपक की ओर अक्षत छिडकें . भाव रहे कि धूप सुँघा रहे हैं व दीपक से माँ की आरती कर रहे हैं .

भूर्भुव: स्व: नैवेद्यं समर्पयामि .
गौरीदेव्यै नम: ..

ॐ भूर्भुव: स्व: नैवेद्य अर्थात् प्रसाद समर्पित है . माता गौरी देवी को नमस्कार है .

पुष्प से जल छिडकें . अलग पात्र में जो थोडा नैवेद्य रखा है उसको चढ़ायें . भाव रखें कि माँ गौरी फल, मेवा एवं मिठाई पा रही हैं .

भूर्भुव: स्व: आचमनीयं जलं समर्पयामि .
मुख शुध्दे पुन: आचमनीयं जलं समर्पयामि .
गौरीदेव्यै नम: ..

ॐ भूर्भुव: स्व: पीने योग्य शुध्द जल अर्पित है . मुख की शुध्दि के लिये पुन: जल अर्पित है . माता गौरी देवी को नमस्कार है .

आचमनी से जल चढ़ायें भाव रहे कि मां जल ग्रहण कर रही हैं . दुबारा मुँह की शुध्दि के लिये जल चडायें .

भूर्भुव: स्व: गौरीदेव्यै नम: .
मम पूजां गृहाण .

ॐ भूर्भुव: स्व: गौरी देवी को नमस्कार है . मेरी पूजा ग्रहण कीजिये .

अक्षत छोडते जाइये एवं भाव रखिये कि गौरी देवी ने पूजा को स्वीकार किया और पूजा से प्रसन्न हो गयीँ .

नमन

हाथ में पुष्प अक्षत ले कर, दोनों हाथ जोडे .

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके .
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते ..

नारायणि . आप सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हैं . आप कल्याण करने वाली शिवा हैं . सब प्रकार के मनोरथों को सिध्द करने वाली हैं . शरणागत वत्सला तीन नयनों वाली गौरी (माँ) आपको नमस्कार है .

अनया पूजया श्री गौर अम्बिके प्रीयतां मम .

मेरे द्वारा यह पूजा की गयी है , हे माँ गौरी आप मेरे ऊपर प्रसन्न होइये .

फूल और अक्षत माँ गौरी के सन्मुख रख दें .

प्रार्थना

हाथ जोड कर ध्यान करें

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखं .
रूपं देहि जयं देहि यशोदेहि द्विषो जहि ..

हे माँ . मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो. परम सुख दो, जय दो, यश दो, और मेरे काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ..

भूर्भुव: स्व: गौरीदेव्यै नम: .
प्रार्थनां समर्पयामि ..

ॐ भूर्भुव: स्व: गौरी देवी को नमस्कार है . प्रार्थना को अर्पित करते हैं . स्वीकार करिये .

श्री गणपति पूजन

सब देवताओं के पूजन में सर्वप्रथम गणेशजी के पूजन का विशेष महत्व है क्योंकि गणेशजी पूजन के समय आनेवाले विघ्नों को भी दूर करते हैं . हाथ में पुष्प व अक्षत लेकर श्री गणपति का ध्यान और आवाहन करें .

श्रीगणपति ध्यान

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजंबूफलसारभक्षितम् .
उमासुतं शोकविनाशकारणं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ..

हाथी के मुखवाले, भूतगणो से सेवित, थोडा थोडा जम्बूफल (जामुन) का भोजन करने वाले, पार्वतीजी के पुत्र जो कि सब शोक (दु:ख) को दूर करनेवाले हैं उन विघ्नेश्वर (गणपति) को (जिनके) चरण कमल के समान हैं, नमस्कार करती हूँ .

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय .
लम्बोदराय सकलाय जगधिताय ..
नागाननाय श्रुतियज्ञ विभूषिताय .
गौरीसुताय गणनाथ नमोनमस्तुते ..

विघ्नों को दूर करनेवाले, वर (वाञ्छित फल) देने वाले, लम्बे (मोटे) पेट वाले, सारे संसार का मंगल (कल्याण) करने वाले, नागाननाय श्रुति यज्ञ में सुशोभित रहने वाले, पार्वती के पुत्र गणनाथ (गणपति) को नमस्कार है, नमस्कार है .

अक्षत व पुष्प गणेशजी के सम्मुख रख दें .

श्री गणपति आवाहन

भूर्भुव: स्व: .
श्री गणपति इहागच्छ इहातिष्ठ सुप्रतिष्ठो भव .
मम पूजां गृहाण .

ॐ भूर्भुव: स्व: गणपति यहाँ आइये, यहाँ बैठिये, सुप्रतिष्ठ होइये और मेरी पूजा को गृहण कीजिये .

मन्त्र कहते हुए पुष्प एवं अक्षत गणपति के सामने रख दें .

सप्तोपचार पूजन मन्त्र

आचमनीयं स्नानं जलं समर्पयामि .

आचमन और स्नान के लिये जल समर्पित है .

पुष्प से जल छिडकें .

वस्त्रं उपवस्त्रं समर्पयामि .

वस्त्र और उपवस्त्र समर्पित है .

रक्षासूत्र का ६ इन्च लम्बा टुकडा तोडकर चढ़ाएं . तत्पश्चात् पुन: रक्षासूत्र तोडकर चढ़ाएं . भाव ऐसा रहे कि गणपति महाराज को वस्त्र पहना रहे हैं .

गन्धं समर्पयामि .

रोली और हल्दी तिलक के लिये समर्पित है .

रोली हल्दी का तिलक लगा रहे हैं ऐसा भाव रखते हुए रोली और हल्दी छिडकें .

पुष्पाणि समर्पयामि .

पुष्प एवं पुष्पमाला समर्पित है .

पुष्पों को चढ़ायें और पुष्पमाला हो तो पहनावें .

धूपं दीपं दर्शयामि .

धूप अथवा अगरबत्ती एवं दीपक दिखाते हैं .

धूप अथवा अगरबत्ती जलावें . धूप अथवा अगरबत्ती की ओर अक्षत डाल कर भाव रखें कि धूप दिखा रहे हैं . दीपक की ओर अक्षत छिडक कर दीपक दिखाने का भाव रखें .

नैवेद्यं समर्पयामि .

नैवेद्य अर्थात् प्रसाद समर्पित है .

पुष्प से जल छिडकें . अलग पात्र में जो थोडा प्रसाद रखा है वह गणपति के सम्मुख रखें . भाव रखें कि भगवान गणपतिजी प्रसाद पा रहे हैं .

आचमनीयं समर्पयामि .

पीने के लिये शुध्द जल समर्पित है .

शुध्द जल २ बार चढ़ायें . भाव रखें कि गणेशजी जल पी रहे हैं .

नमन

सर्व विघ्न हरस्तस्मै श्रीमन्गणाधिपतये नम: .
श्री गणेशाय नम: .

(पूजन के समय) सब विघ्नओं को दूर करने वाले श्रीमान् महागणपतिजी को नमस्कार है .

श्रध्दापूर्वक नमस्कार करें .

प्रार्थना

दोनों हाथ जोड कर ध्यानपूर्वक प्रार्थना करें

वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ .
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ..

टेढ़ी सूँड वाले, विशाल शरीर वाले, करोडों सूर्य के समान आभा वाले (गणपति) देव मेरे सब कार्यों को हमेशा विघ्नों से रहित करिये .

सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णक: .
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिप: .
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन: .
द्वादशैतानि नामानि : पठेच्छृणुयादपि .
विद्यारंभे विवाहे प्रवेशे निर्गमे तथा .
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य जायते ..

सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक ( हाथी के कानों वाले) , लम्बे उदर वाले, विकट यानी बडे शरीर वाले, विघ्नों का नाश करने वाले, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, गजाननन, इन बारह नामों को जो विद्या आरम्भ के समय, विवाह में, ( घर के ) बाहर जाते समय और ( घर में) आते समय, संग्राम में और संकट में पढ़ेगा अथवा सुनेगा उसको विघ्न पैदा नहीं होंगे अर्थात् उसके कार्य में कोई भी संकट नहीं आयेगा .

श्रीमन्गणाधिपतये नम: .
श्री गणेशाय नम: .

श्रीमान् महा गणपतिजी को नमस्कार है .

श्री गणेशजी के निमित्त अक्षत पुष्प छोडें . अर्थात् गणेशजी के सम्मुख अक्षत पुष्प रख दें .

पूर्व पूजा

नदियों का आवाहन

आचमन के जलपात्र को पृथ्वी पर रखें . दोनों हथेलियों से जल को ढकें तथा मन्त्र का उच्चारण करें .

गङ्गे यमुने चैव गोदावरि सरस्वति .
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ..

गंगा, यमुना, गोदावरि, सरस्वति, नर्मदा, सिन्धु तथा कावेरि इस जल में समावेश करें .

ऐसा अनुभव करें कि इस मन्त्र के द्वारा पात्र के जल में सब नदियों का समावेश हो रहा है . हाथ हटा कर नमस्कार करें .

आसन शुध्दि

आसन के नीचे जल छिडकें . प्रार्थना करें कि सारे संसार को आधार देने वाली पृथ्वी मेरा आसन पवित्र करें .

पवित्रीकरण

अपवित्रो पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा .
: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं बाह्याभ्यंतर: शुचि: ..

प्राणी अपवित्र हो या पवित्र अथवा किसी भी दशा में स्थित हो, जो पुण्डरीकाक्ष ( कमलनयन भगवान विष्णु) का स्मरण करता है, वह बाहर और भीतर सब ओर से शुध्द हो जाता है .

मन्त्र बोलते हुए पुष्प से शरीर पर ३ बार जल छिडकें . कुछ आचार्य पात्र से शुध्द जल अपने बायें हाथ की हथेली पर लेते हैं . दाहिने हाथ का ? ंगूठा, मध्यमा और अनामिका जोडकर बायें हाथ के जल को तीन बार अपने ऊपर छिडकते हैं .

प्रार्थना करें कि हे कमलनयन भगवान विष्णु हम आपका स्मरण कर अपने को पवित्र करते हैं .

आचमन

अन्त:करण की शान्ति और शक्ति के लिये नीचे लिखे मन्त्रों में से एक एक मन्त्र बोलकर प्रत्येक मन्त्र के साथ एक एक आचमन करिये . आचमन करते समय शिव संकल्प करिये कि ये तीनों आचमन मुझे तीनों वेदों ( ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद) की विद्या का अधिकारी बनायें, मुझे तीनों गुणों ( सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण) के पार होने का बल प्राप्त हो, मैं त्रयतापों ( आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक) से छूटकर सच्चिदानन्द में विचरण करूं .

तीनों बार बायें हाथ से दाहिने हाथ में जल डालें . मन्त्रोच्चारण करके जल को पी लें .

केशवाय स्वाहा .

प्रथम आचमन के केशव भगवान रक्षक एवं भव भयहारी हैं .

माधवाय स्वाहा .

द्वितीय आचमन के माधव भगवान दाता और सुखकारी हैं .

नारायणाय स्वाहा .

तृतीय आचमन के नारायण यानी विष्णु भगवान कर्ता, भर्ता, स्वामी, अन्तरयामी एवं मंगलकारी हैं .

विशेष

जो भी पुण्य कर्म करें उसके प्रारम्भ में आचमन अवश्य करना चाहिये . क्षत्रिय के कण्ठ तक जल पहुँचने से आचमन होता है . आचमन से मानसिक उत्तेजना शान्त होती है . इन्द्रियों को धोने से, कुल्ला करने से, पानी पीने से काम, क्रोध आदि विकारों को दूर होते हुए देखा गया है . आचमन के मन्त्रों पर विचार करने से ज्ञात होता है कि ये विभिन्न प्रकार के दोषों को दूर करने की प्रार्थनायें हैं .

मन्त्र के साथ भावनापूर्वक आचमन करने से पूजन व परमेश्वर में ध्यान लगाने में बहुत सहायता मिलती है . यानी पूजन में मन लगता है . आचमन का जल जो हथेली से चू कर गिरता है उससे नाग, यक्ष आदि तृप्त हो जाते हैं .

गोविंदाय नम: .

मन्त्र कहते हुए २ बार हाथ धो लें . जल रिक्त पात्र में गिरे .

मन्त्र का अभिप्राय यह है कि आनन्द उत्साह एवं दृढ़् विश्वास के साथ अनुभव करिये कि परमेश्वर के ध्यान से और उनकी उपस्थिति से स्वयं को सुख, विजय, श्री, आनन्द, सौभाग्य एवं वाञ्छित फल ( पति की दीर्घ आयु) की प्राप्ति हो .

गायत्री मन्त्र

भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो : प्रचोदयात् .

अभिप्राय अर्थ
उस प्राण स्वरूप, दु:खनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ तेजस्वी व पापनाशक देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें . वह परमात्मा हमारी बुध्दि को सन्मार्ग में प्रेरित करें . ( भावार्थ गायत्री परिवार से)

शाब्दिक अर्थ
हम स्थावर जंगम रूप सम्पूर्ण विश्व को उत्पन्न करने वाले उस प्रकाशमय परमेश्वर के भजने योग्य तेज का ध्यान करते हैं जो हमारी बुध्दियों को सत्कर्म की ओर प्रेरित करते हैं और जो भूर्भुव: स्व: स्वरूप ब्रह्म हैं .

अपनी रक्षा के लिये अपने चारों ओर जल छिडकें .

दीप प्रज्ज्वलन


भो दीप देव स्वरूपस्त्वं कर्म साक्षी ह्यविघ्नकृत .
यावत् कर्म समाप्ति: स्यात् तावत्त्वं सुस्थिर भव ..

हे दीप , आप देवता स्वरूप हैं . सब विघ्नों को दूर करके मेरे कर्मों के साक्षी रूप ( आप) पूजन ( कर्म) समाप्ति तक प्रकाशित रहें .

अक्षत पर दीपक रखें . दीपक को प्रज्ज्वलित कर दें यानी जला दें . हाथ में गन्ध ( रोली) , अक्षत और पुष्प लेकर प्रार्थना करें .

दीप प्रार्थना

शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा .
शत्रुबुध्दिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ..

दीपक की ज्योति को नमस्कार है जो शत्रुता की बुध्दि का विनाश करती है, आरोग्य, धन और संपदा देते हुए मंगल व शुभ करती है .

दीपज्योति: परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दन: .
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ..

दीपक की ज्योति परमब्रह्म ( स्वरूप) है . दीप की ज्योति सर्वश्रेष्ठ है ( यानी सबसे ऊँची मान्य है ) . दीपक की ज्योति मेरे पापों का नाश करती है . दीपक की ज्योति को नमस्कार है .

गन्ध अक्षत पुष्पाणि समर्पयामि .

गन्ध अक्षत और पुष्प समर्पित है .

हाथ में लिये हुए पुष्प, अक्षत एवं रोली दीपक के आगे रख दें . जल से हाथ धो लें . जल हाथ धोने वाले पात्र में गिरे .

गुरु वन्दना

सब पूजनों में गुरु वन्दना करके मन ही मन गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिये . तत्पश्चात् देवगणों का पूजन प्ररम्भ करना चाहिये .

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: .
गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: ..

गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही महेश्वर ( शिव) हैं, गुरु ही विष्णु हैं . साक्षात् गुरु ब्रह्म से भी ऊँचे ( परे) हैं . उस गुरु को नमस्कार है .

हाथ जोड कर गुरु को नमन करिये .

देवतावन्दनम्


श्रीमन् महागणाधिपतये नम: .
श्री लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम: .
श्री उमामहेश्वराभ्यां नम: .
वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नम: .
शचीपुरंदराभ्यां नम: .
मातापितृचरणकमलेभ्यो नम: .
इष्टदेवताभ्यो नम: .
कुलदेवताभ्यो नम: .
स्थानदेवताभ्यो नम: .
वास्तुदेवताभ्यो नम: .
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमो नम: .
.. अविघ्नमस्तु ..

सब देवगणों का नमन .

बायें हाथ में अक्षत लेकर दाहिने हाथ से छिडकते जावें . एक देवता को नमन करके अक्षत छोडें . दूसरे देवता को नमन करके पुन: अक्षत छोडें . इस प्रकार सब देवताओं को नमन करिये .

स्वस्तिवाचन

स्वस्ति इन्द्रो वृध्दश्रवा: .
स्वस्ति : पूषा विश्ववेदा: .
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमि: .
स्वस्तिर्नो बृहस्पतिर्दधातु ..

ॐ इन्द्र हमारा कल्याण करें . वृध्दश्रवा हमारा कल्याण करें . पूषा और ब्रह्मा हमारा कल्याण करें . सब अरिष्टों ( कष्टों, संकटों ) के निवारक नाग देवता हमारा कल्याण करें . बृहस्पति देवता एवं धन के स्वामी हमारा कल्याण करें .

द्यौ: शान्ति:
अन्तरिक्ष शान्ति:
पृथ्वी शान्ति:
आप: शान्ति:
औषधय: शान्ति:
वनस्पतय: शान्ति:
विश्वेदेवा: शान्ति:
ब्रह्मा शान्ति:
सर्वऽशान्ति:
शान्तिरेव शान्ति:
सा मा शान्तिरेधि ..

ॐ वायु में शान्ति हो, आकाश में शान्ति हो, पृथ्वी में शान्ति हो, औषध में शान्ति हो, वनस्पति में शान्ति हो, सारे संसार के देवतागणों में शान्ति हो, ब्रह्म में शान्ति हो, चारों ओर शान्ति, शान्ति शान्ति हो .