पूर्व पूजा

नदियों का आवाहन

आचमन के जलपात्र को पृथ्वी पर रखें . दोनों हथेलियों से जल को ढकें तथा मन्त्र का उच्चारण करें .

गङ्गे यमुने चैव गोदावरि सरस्वति .
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ..

गंगा, यमुना, गोदावरि, सरस्वति, नर्मदा, सिन्धु तथा कावेरि इस जल में समावेश करें .

ऐसा अनुभव करें कि इस मन्त्र के द्वारा पात्र के जल में सब नदियों का समावेश हो रहा है . हाथ हटा कर नमस्कार करें .

आसन शुध्दि

आसन के नीचे जल छिडकें . प्रार्थना करें कि सारे संसार को आधार देने वाली पृथ्वी मेरा आसन पवित्र करें .

पवित्रीकरण

अपवित्रो पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा .
: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं बाह्याभ्यंतर: शुचि: ..

प्राणी अपवित्र हो या पवित्र अथवा किसी भी दशा में स्थित हो, जो पुण्डरीकाक्ष ( कमलनयन भगवान विष्णु) का स्मरण करता है, वह बाहर और भीतर सब ओर से शुध्द हो जाता है .

मन्त्र बोलते हुए पुष्प से शरीर पर ३ बार जल छिडकें . कुछ आचार्य पात्र से शुध्द जल अपने बायें हाथ की हथेली पर लेते हैं . दाहिने हाथ का ? ंगूठा, मध्यमा और अनामिका जोडकर बायें हाथ के जल को तीन बार अपने ऊपर छिडकते हैं .

प्रार्थना करें कि हे कमलनयन भगवान विष्णु हम आपका स्मरण कर अपने को पवित्र करते हैं .

आचमन

अन्त:करण की शान्ति और शक्ति के लिये नीचे लिखे मन्त्रों में से एक एक मन्त्र बोलकर प्रत्येक मन्त्र के साथ एक एक आचमन करिये . आचमन करते समय शिव संकल्प करिये कि ये तीनों आचमन मुझे तीनों वेदों ( ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद) की विद्या का अधिकारी बनायें, मुझे तीनों गुणों ( सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण) के पार होने का बल प्राप्त हो, मैं त्रयतापों ( आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक) से छूटकर सच्चिदानन्द में विचरण करूं .

तीनों बार बायें हाथ से दाहिने हाथ में जल डालें . मन्त्रोच्चारण करके जल को पी लें .

केशवाय स्वाहा .

प्रथम आचमन के केशव भगवान रक्षक एवं भव भयहारी हैं .

माधवाय स्वाहा .

द्वितीय आचमन के माधव भगवान दाता और सुखकारी हैं .

नारायणाय स्वाहा .

तृतीय आचमन के नारायण यानी विष्णु भगवान कर्ता, भर्ता, स्वामी, अन्तरयामी एवं मंगलकारी हैं .

विशेष

जो भी पुण्य कर्म करें उसके प्रारम्भ में आचमन अवश्य करना चाहिये . क्षत्रिय के कण्ठ तक जल पहुँचने से आचमन होता है . आचमन से मानसिक उत्तेजना शान्त होती है . इन्द्रियों को धोने से, कुल्ला करने से, पानी पीने से काम, क्रोध आदि विकारों को दूर होते हुए देखा गया है . आचमन के मन्त्रों पर विचार करने से ज्ञात होता है कि ये विभिन्न प्रकार के दोषों को दूर करने की प्रार्थनायें हैं .

मन्त्र के साथ भावनापूर्वक आचमन करने से पूजन व परमेश्वर में ध्यान लगाने में बहुत सहायता मिलती है . यानी पूजन में मन लगता है . आचमन का जल जो हथेली से चू कर गिरता है उससे नाग, यक्ष आदि तृप्त हो जाते हैं .

गोविंदाय नम: .

मन्त्र कहते हुए २ बार हाथ धो लें . जल रिक्त पात्र में गिरे .

मन्त्र का अभिप्राय यह है कि आनन्द उत्साह एवं दृढ़् विश्वास के साथ अनुभव करिये कि परमेश्वर के ध्यान से और उनकी उपस्थिति से स्वयं को सुख, विजय, श्री, आनन्द, सौभाग्य एवं वाञ्छित फल ( पति की दीर्घ आयु) की प्राप्ति हो .

गायत्री मन्त्र

भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो : प्रचोदयात् .

अभिप्राय अर्थ
उस प्राण स्वरूप, दु:खनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ तेजस्वी व पापनाशक देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें . वह परमात्मा हमारी बुध्दि को सन्मार्ग में प्रेरित करें . ( भावार्थ गायत्री परिवार से)

शाब्दिक अर्थ
हम स्थावर जंगम रूप सम्पूर्ण विश्व को उत्पन्न करने वाले उस प्रकाशमय परमेश्वर के भजने योग्य तेज का ध्यान करते हैं जो हमारी बुध्दियों को सत्कर्म की ओर प्रेरित करते हैं और जो भूर्भुव: स्व: स्वरूप ब्रह्म हैं .

अपनी रक्षा के लिये अपने चारों ओर जल छिडकें .

दीप प्रज्ज्वलन


भो दीप देव स्वरूपस्त्वं कर्म साक्षी ह्यविघ्नकृत .
यावत् कर्म समाप्ति: स्यात् तावत्त्वं सुस्थिर भव ..

हे दीप , आप देवता स्वरूप हैं . सब विघ्नों को दूर करके मेरे कर्मों के साक्षी रूप ( आप) पूजन ( कर्म) समाप्ति तक प्रकाशित रहें .

अक्षत पर दीपक रखें . दीपक को प्रज्ज्वलित कर दें यानी जला दें . हाथ में गन्ध ( रोली) , अक्षत और पुष्प लेकर प्रार्थना करें .

दीप प्रार्थना

शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा .
शत्रुबुध्दिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ..

दीपक की ज्योति को नमस्कार है जो शत्रुता की बुध्दि का विनाश करती है, आरोग्य, धन और संपदा देते हुए मंगल व शुभ करती है .

दीपज्योति: परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दन: .
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ..

दीपक की ज्योति परमब्रह्म ( स्वरूप) है . दीप की ज्योति सर्वश्रेष्ठ है ( यानी सबसे ऊँची मान्य है ) . दीपक की ज्योति मेरे पापों का नाश करती है . दीपक की ज्योति को नमस्कार है .

गन्ध अक्षत पुष्पाणि समर्पयामि .

गन्ध अक्षत और पुष्प समर्पित है .

हाथ में लिये हुए पुष्प, अक्षत एवं रोली दीपक के आगे रख दें . जल से हाथ धो लें . जल हाथ धोने वाले पात्र में गिरे .

गुरु वन्दना

सब पूजनों में गुरु वन्दना करके मन ही मन गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिये . तत्पश्चात् देवगणों का पूजन प्ररम्भ करना चाहिये .

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: .
गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: ..

गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही महेश्वर ( शिव) हैं, गुरु ही विष्णु हैं . साक्षात् गुरु ब्रह्म से भी ऊँचे ( परे) हैं . उस गुरु को नमस्कार है .

हाथ जोड कर गुरु को नमन करिये .

देवतावन्दनम्


श्रीमन् महागणाधिपतये नम: .
श्री लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम: .
श्री उमामहेश्वराभ्यां नम: .
वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नम: .
शचीपुरंदराभ्यां नम: .
मातापितृचरणकमलेभ्यो नम: .
इष्टदेवताभ्यो नम: .
कुलदेवताभ्यो नम: .
स्थानदेवताभ्यो नम: .
वास्तुदेवताभ्यो नम: .
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमो नम: .
.. अविघ्नमस्तु ..

सब देवगणों का नमन .

बायें हाथ में अक्षत लेकर दाहिने हाथ से छिडकते जावें . एक देवता को नमन करके अक्षत छोडें . दूसरे देवता को नमन करके पुन: अक्षत छोडें . इस प्रकार सब देवताओं को नमन करिये .

स्वस्तिवाचन

स्वस्ति इन्द्रो वृध्दश्रवा: .
स्वस्ति : पूषा विश्ववेदा: .
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमि: .
स्वस्तिर्नो बृहस्पतिर्दधातु ..

ॐ इन्द्र हमारा कल्याण करें . वृध्दश्रवा हमारा कल्याण करें . पूषा और ब्रह्मा हमारा कल्याण करें . सब अरिष्टों ( कष्टों, संकटों ) के निवारक नाग देवता हमारा कल्याण करें . बृहस्पति देवता एवं धन के स्वामी हमारा कल्याण करें .

द्यौ: शान्ति:
अन्तरिक्ष शान्ति:
पृथ्वी शान्ति:
आप: शान्ति:
औषधय: शान्ति:
वनस्पतय: शान्ति:
विश्वेदेवा: शान्ति:
ब्रह्मा शान्ति:
सर्वऽशान्ति:
शान्तिरेव शान्ति:
सा मा शान्तिरेधि ..

ॐ वायु में शान्ति हो, आकाश में शान्ति हो, पृथ्वी में शान्ति हो, औषध में शान्ति हो, वनस्पति में शान्ति हो, सारे संसार के देवतागणों में शान्ति हो, ब्रह्म में शान्ति हो, चारों ओर शान्ति, शान्ति शान्ति हो .