श्री शिव पूजन ( प्रधान देवता)

हाथ जोड कर, हाथ में पुष्प व अक्षत लेकर

ध्यान

भवानीशंकरौ वन्दे श्रध्दाविश्वास रूपिणौ .
याभ्यां बिना पश्यन्ति सिध्दा: स्वान्त: स्थमीश्वरम् ..

श्रध्दा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वन्दना करता हुँ . जिनके बिना सिध्दजन अपने अन्त:करण में स्थित ईश्वर को देख नहीं सकते .

नमस्कार

कुन्दुइन्दुवर गौर सुन्दरं अम्बिकापतिं इष्टसिध्दिदम् .
कारुणीककल कञ्जलोचनं नौमि शंकरं अनङ्गमोचनम् ..

कुन्द के फूल, चन्द्रमा और शङ्ख के समान सुन्दर गौर वर्ण जगत्जननी श्री पार्वतीजी के पति, वाञ्छित फल देनेवाले, (दुखियों पर सदा) दया करने वाले, सुन्दर कमल के समान नेत्र वाले, कामदेव से छुडाने वाले (कल्याणकारी) श्री शंकरजी को मैं नमस्कार करती हूँ .

नम: शिवाय कहते हुए पुष्प व अक्षत छोडें .

पूजन

नम: शिवाय .
आसनं समर्पयामि ..

ॐ नम: शिवाय कहते हुए आसन पर पुष्प से अक्षत छोडें .

नम: शिवाय .
पाद्यं समर्पयामि ..

ॐ नम: शिवाय कहते हुए चरण धोने के लिये जल चरणों पर छिडकें .

नम: शिवाय .
अर्घ्यं आचमनीयं समर्पयामि ..

ॐ नम: शिवाय कहते हुए पुष्प से अर्घ्य के लिये जल चढ़ायें तत्पश्चात् मुख धोने के लिये पुष्प से जल छिडकें .

हाथ में पुष्प व अक्षत लेकर प्रार्थना करें .

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम् .
ऊर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मोक्षियमामृतात् ..

ॐ हम त्रिनेत्रधारी ( शिवजी) को प्रणाम करते हैं , जो दिव्यगन्धी हैं और पुष्टियों को बढ़ाने वाले हैं . जिस प्रकार पका हुआ फल तरु से मुक्त हो जाता है उसी प्रकार हमें मृत्यु से मुक्त कर अमृतत्व का दान देवें .

पुष्प व अक्षत छोडें .

विशेष: यह मृत्युञ्जय मंत्र है, इसका प्रतिदिन उच्चारण करना चाहिये .

नम: शिवाय .
स्नानं समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय कहते हुए स्नान कराने की भावना से पुष्प से जल छिडकें .

नम: शिवाय .
दुग्ध, दधि, घृत, मधु, शर्करा स्नानं समर्पयामि .
नम: शिवाय .
पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि .

पञ्चामृतं मयानीतं पयोदधि समन्वितम् .
घृत मधु शर्करया स्नानार्थं प्रति गृह्यताम् ..

दूध, दधि, घृत, मधु व शर्करा से युक्त पञ्चामृत का स्नान गृहण करें .

पुष्प से शिवजी के ऊपर पञ्चामृत छिडकिये .

नम: शिवाय .
शुध्दोदक स्नानं समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . शुध्द जल का स्नान अर्पित है.

शुध्द जल छिडकें .

नम: शिवाय .
वस्त्र उपवस्त्रं समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . वस्त्र एवं उपवस्त्र अर्पित है .

रक्षासूत्र तोडकर एक बार वस्त्र के लिये, दुबारा उपवस्त्र के लिये चढ़ायें .

नम: शिवाय .
गन्धं चन्दनं समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . गन्ध और चन्दन समर्पित है .

रोली व चन्दन से टीका लगायें .

नम: शिवाय .
पुष्पं पुष्पमालां समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . पुष्प और पुष्पमाला अर्पित है .

पुष्प व माला चढ़ावें व पहनावें .

नम: शिवाय .
धूपं दीपं दर्शयामि .

ॐ नम: शिवाय . धूप व दीप दिखाते हैं .

धूप की ओर अक्षत छिडकें . दीपक की ओर अक्षत छिडकें . ऐसा भाव रहे कि धूपबत्ती दिखा रहे हैं एवं दीपक से आरती कर रहे हैं .

नम: शिवाय .
नैवेद्यं समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . प्रसाद अर्पित है .

पात्र में थोडा फल, मिष्ठान व मेवा शंकरजी को अर्पित करें , भाव रखें कि भगवान् भोग पा रहे हैं .

नम: शिवाय .
आचमनीयं जलं समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . पीने योग्य जल अर्पित है .

आचमनी से प्रथम बार पीने के लिये जल चढ़ायें . दूसरी बार मुख शुध्दि के लिये जल चढ़ायें .

प्रार्थना

हाथ जोडकर कहें,

नम: शिवाय .
प्रार्थनां करोमि

वन्दे उमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणम् .
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् .
वन्दे सूर्य शशाङ्क वह्निनयन वन्दे मुकुन्द प्रियम् .
वन्दे भक्तजनाश्रयं वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् .

श्री पार्वतीजी के पति (शंकर) को नमस्कार है . संसार के संहारकारी, देवताओं के गुरु (शिव) को नमस्कार है . सर्पों के आभूषण धारण करने वाले (शिव) को नम्स्कार है . हिरण चर्म को धारण करने वाले (शिव) को नमस्कार है . पशुओं (प्राणियों) के नाथ (शिव) को नमस्कार है . सूर्य, चन्द्र, अग्नि नयन वाले (शिव) को नमस्कार है . मुकुन्दप्रिय (शिव) को नमस्कार है . भक्त जनों के आश्रय और वर देने वाले कल्याणकारी (शिव) शंकरजी को नमस्कार है .

हाथ में फूल और अक्षत लेकर प्रार्थना करें

नमामि शमीशान निर्वाण रूपम् .
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपम् ..
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहम् .
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ..

हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करती हूँ . निज स्वरूप में स्थित (अर्थात्) मायिक गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाश रूप एवं आकाश को ही वस्त्ररूप में धारण करने वाले दिगम्बर (या आकाश को भी आच्छादित करनेवाले) (शिवजी) मैं आपको नमस्कार करता हूँ .

निराकारमोंकारं तोयं तुरीयं .
गिरा ग्यानगोतीतमीशं गिरीशं ..
करालं महाकाल कालं कृपालं .
गुणागार संसारपारं नतोऽहं ..

निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत) वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेशवर (शिव) को मैं नमस्कार करता हूँ .

तुषाराद्रि संकाश गौरं गंभीरं .
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं ..
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा .
लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ..

जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोडों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुन्दर नदी गङ्गाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है .

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं .
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं .
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं .
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ..

जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं . सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख, नीलकण्ठ और दयालु हैं . सिंह चर्म का वस्त्र धारण किये और मुण्डमाल पहने हैं , उन सबके प्यारे और सबके नाथ ( कल्याण करनेवाले ) श्री शंकरजी को मैं भजती हूँ .

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं .
अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशं ..
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं .
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ..

प्रचंड ( रुद्ररूप) श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, ( प्रेम) भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजती हूँ .

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी .
सदा सज्जनानन्द दाता पुरारि ..
चिदानंद संदोह मोहापहारी .
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारि ..

कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, कल्प का अन्त ( अर्थात् प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले ( कामदेव के शत्रु) हे प्रभो . प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए .

यावद् उमानाथ पादारविन्दं .
भजंतीह लोके परे वा नराणां ..
तावद् सुखं शान्ति सन्तापनाशं .
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ..

जब तक मनुष्य श्रीपार्वतीजी के पति ( शिवजी) के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक में और न तो परलोक में सुख शान्ति मिलती है और अनके तापों ( कष्टों) का भी नाश नहीं होता है . अत: हे समस्त जीवों के अन्दर ( हृदय) में निवास करने वाले प्रभो . प्रसन्न होइए .

जानामि योगं जपं नैव पूजां .
नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं ..
जरा जन्म दुखौद्य तातप्यमानं .
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ..

मैं न तो योग जानता हूँ, न जप और न पूजा ही . हे शम्भो . मैं तो सदा सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूँ . हे प्रभो . बुढ़ापा तथा जन्म ( मृत्यु) के दु:ख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:खों से रक्षा कीजिये . हे ईश्वर . हे शम्भो . मैं आपको नमस्कार करता हूँ .

विशेष : जो मनुष्य इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़्ते हैं उन पर भगवान शम्भु विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं .

नमस्कार

कर्पूर गौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं .
सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि ..

कर्पूर के समान गौर (उज्ज्वल वर्ण वाले) करुणा (दया) के अवतार, संसार के सार, जिनका सर्पों का हार है, (वह शिवजी) सदा मेरे कमलरूपी हृदय में निवास करें . (ऐसे) शिवजी को पार्वती सहित (हम) नमस्कार करते हैं .

नम: शिवाय .
नमस्कारान् प्रार्थनां समर्पयामि .

ॐ नम: शिवाय . नमस्कार और प्रार्थना समर्पित है .

पुष्प अक्षत शिवजी को चढ़ा कर प्रेमपूर्वक नमस्कार करें