पूजन की तैयारी

श्री गणेश
सुपारी पर रक्षासूत्र ( कलावा) यानी मौलि गोलाकार में इस तरह लपेटें कि सुपारी पूर्णतया ढक जाये . एक कटोरी या अन्य छोटे पात्र में थोडा सा अक्षत रखें . इस अक्षत पर गणेश रूप मौलि को रखें .

अम्बिका गौरी
पीली मिट्टी की गौर बनायें . मिट्टी गोलाकार करके ऊपरी सतह पर मिट्टी का त्रिकोण बनायें . मिट्टी उपलब्ध न होने पर एक तांबे के सिक्के पर रक्षासूत्र लपेटें एवं एक छोटे से लाल कपडे से ढक दें . एक रोली की बिन्दी लगायें अथवा बनी हुई बिन्दी लगायें . भाव यह रखें कि माँ गौर का मुख है . अम्बिका गौर के स्वरूप को श्रध्दा पूर्वक गणेशजी के बगल में बायीं ओर रखें .

नन्दीश्वर
एक पुष्प को श्री नन्दीश्वर का स्वरूप मान कर स्थान दें .

कार्तिकेय

एक पुष्प को श्री कार्तिकेय का स्वरूप मान कर स्थान दें .

श्री नन्दीश्वर एवं श्री कार्तिकेय का चित्र हो तो उत्तम है . श्री शंकर, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय एवं श्री नन्दी का सम्मिलित चित्र उपलब्ध रहता है . पुष्प स्वरूप रखना हो तो गणेश और गौर के समीप दूसरे पात्र में अक्षत केऊपर रखें .

श्री शंकरजी
प्रमुख देवता श्री शिवजी का लिंग अथवा चित्र रखें . ( गणेश गौर, नन्दीश्वर, कार्तिकेय के पीछे रखें . )

श्री पार्वतीजी
हल्दी व आटे के सम्मिश्रण से पानी डाल कर घोल तैयार करें . यह एपन कहलाता है . इससे किसी दफ्ती पर पार्वतीजी का चित्र बनायें . चित्र में आभूषण पहनाने के लिये कांटी लगायें . जैसे कण्ठ में माला के लिये कण्ठ के दायें बायें कील लगायें . चरणों मे पायल पहनाने के लिये दोनों चरणों के दोनों ओर कांटी लगायें . कील न लगानी हो तो सिलोटेप से माला आदि को चिपकाया जा सकता है . माँ के चरणों का भक्तिपूर्वक पूजन करें .

करवा
करक का अर्थ करवा होता है . मिट्टी के कलशनुमा पात्र के मध्य में लम्बी गोलाकार छेद के साथ डंडी लगी रहती है . इस तरह के पात्र तांबे, चाँदी व पीतल के भी होते हैं . इस करक या करवा पात्र को श्री गणेश का स्वरूप मानते करक के दान से सुख, सौभाग्य ( सुहाग) , अचल लक्ष्मी एवं पुत्र की प्राप्ति होती है, ऐसा शास्त्र सम्मत है . ऐसी भी मान्यता व अटूट विश्वास है कि करक दान से सब मनोरथों की प्राप्ति होती है .

मिट्टी, तांबे, पीतल अथवा चाँदी के २ करवा . करवा न हो तो, २ लोटा .

करवा में रक्षासूत्र बांधे . एपन से सतिया ( स्वस्तिक ) बनायें . दोनों करवों में कण्ठ तक जल भरें . या एक करवा में दुग्ध अथवा जल भरें . एक करवा में मेवा जो सास को दिया जाता है . दुग्ध अथवा जल से भरे करवे में तांबे या चाँदी का सिक्का डालें .


पूजन सामग्री
धूप, दीप, कपूर, रोली, चन्दन, सिन्दूर, काजल इत्यादि
पूजन सामग्री थाली में दाहिनी ओर रखें . दीपक में घृत इतना हो कि सम्पूर्ण पूजन तक दीपक प्रज्ज्वलित रहे .

नैवेद्य
नैवेद्य के लिये चावल की खीर, पुआ, दहीबडा, बडी, चावल या चने की दाल का फरा, चने की दाल की पूरी या अन्य तरह की पूरी और गुड का हलवा बनाना चाहिये . नैवेद्य में पूर्ण फल, सूखा मेवा अथवा मिठाई हो . प्रसाद एवंविविध व्यञ्जन थाली में सजा कर रखें . गणेश गौर, नन्दी एवं कार्तिकेय और श्रीशिवजी के लिये नैवेद्य तीन जगह अलग अलग छोटे पात्र में रखें .

जल के लिये ३ पात्र
१ आचमन के जल के लिये छोटे पात्र में जल भर कर रखें . साथ में एक चम्मच भी रखें .
२ हाथ धोने का पानी इस रिक्त पात्र में गिरे .
३ विनियोग के पानी के लिये बडा पात्र जल भर कर रखें .

पुष्प
पुष्प एवं पुष्पमाला थाली में दाहिनी ओर रखें .

चन्द्रमा
चन्द्रदेव या चन्द्रमा का चित्र अग्निकोण में स्थापित करें . यानी स्वयं के दाहिनी ओर .
चावल को भिगो दें . भीग जाने पर पीस लें . उसके बाद चावल की पीठी का एक गोल आकार बनायें . कम से कम तीन इन्च चपटा हो . चापल की पीठी से ५ लम्बी लम्बी डंडियाँ बनावें . गोलाकार चन्द्र के ऊपर पूर्व से पश्चिम तक ४ डंडियां लगायें . पाँचवी डंडी थोडी चौडी बनायें, इसकी आकृति चौथ के चाँद के समान होनी चाहिये . इसे उत्तर से दक्षिण की तरफ लगायें .

श्री चन्द्र अर्क/अर्घ्य
श्री चन्द्र देव भगवान शंकरजी के भाल पर सुशोभित हैं . इस कारण श्री चन्द्रदेवजी की आराधना उनका पूजन एवं अर्क देकर सम्पन्न की जाती है . वस्तुत: शंकरजी की प्रत्येक उपासना व गौरीजी के व्रत का पूजन चन्द्रदेव को अर्क देकर ही सम्पूर्ण होता है . अत: चन्द्र स्तुति, पूजन और आराधना विशेष फलदायी होती है .